एक स्त्री और उसका पति सर्कस में काम करते थे। स्त्री स्टेज में एक जगह खड़ी हो जाती थी और पति बिना देखे तीर उसकी ओर मारता था जिससे उसके चारो ओर तीरों की डिजाइन बन जाती थी। उसके हर तीर के साथ तालियाँ बजती थी।
एक दिन दोनों में तकरार हो गई। पति को इतना गुस्सा आया कि उसने सर्कस के खेल में उसे मारने का मन बना लिया। रोज़ की तरह तमाशा शुरू हुआ। व्यक्ति ने स्त्री को मारने के लक्ष्य करके तीर मारा। पर यह क्या, फिर तालियों की गडगड़ाहट। उसने आँखे खोली तो हैरान रह गया। तीर पहले की तरह ही स्त्री को छूते हुए किनारे लग जाता था। यह है अभ्यास। उसको ऐसे ही अभ्यास था तो वह चाहकर भी गलत तीर नही मार सका।
इस प्रकार जब सकारात्मक सोचने का अभ्यास हो जाता है तो मन अपने आप ही वश में रह परमात्मा की ओर लग जाता है।
ठीक इसी तरह हम ये भूल गए हैं कि वास्तव में हम आत्मा है, इस शरीर को चलाने वाले परमात्मा की सन्तान हैं। जो सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्र, शक्ति और ज्ञान स्वरूप हैं और हम इस धरा पर खेल खेलने आते हैं। अब ये बात सिर्फ दो चार बार सुनने से पक्की नही हो जाती है। इसके लिए बार-बार अभ्यास करना पड़ता है और परमात्मा शिक्षक के रूप में सबसे पहले रोज़ यही पाठ पक्का कराते हैं कि अपने को आत्मा समझो, याद करो अपने अच्छे स्वरूप को और फिर से पहले जैसे बनो ताकि पुराने किये हुए पाप कट जाएँ और पुण्य का खाता जमा हो जाए। ना जाने कितने जन्मों से हम खुद को शरीर समझ झूठी मृगतृष्णा में जीते आये हैं और पाप कर्म करते रहे हैं लेकिन कभी भी उन कर्मो को पाप नही समझा।परमात्मा आकर समझा देते हैं कि पुण्य और पाप कर्म क्या होते हैं। परमात्मा की बातें समझने के लिए आत्मा का अभ्यास पक्का होना चाहिए, फिर ड्रामा के खेल को समझना बहुत सरल हो जाएगा। पूरे चक्र में एक यही समय है जब समझ मिलती है। बाकी तो सारा जीवन ही अज्ञानता वश जीते हैं हम।

0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!